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Showing posts from 2013

इंतज़ार...

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धीरे धीरे जिंदगी के सभी रंग फीके हो गए , पर यादों के रंग आज भी सजीव हैं  , वो रंग  जो भरपूर जिए थे तुम्हारे साथ, सब सहेज कर रखे हैं मैंने ,   लाल रंग  तुमने कहा था हमारे  दिल का प्रतीक है, ये फीका न पड़े , उससे मैंने आज तक अपनी यादों की  मांग सजा रखी है .. सुनहरा रंग , तुमने कहा था साथ धड़कती हमारी धडकनों का है , उसे मैंने आज तक सहेजा है अपनी याद का बिछौना बना कर.. नीला रंग  आकाश की तरह असीमित हमारे प्रेम का, आँखों में सहेजा है मैंने अश्रु बना कर.. और हरा रंग तुमने कहा था निशानी है हमारी हरी भरी मोहब्बत की , उससे मैंने  आज तक यादों की,  मखमली घास बिछा रखी है .. की तुम कभी तो आओगे लौट कर , ये रंग करेंगे तुम्हारा स्वागत, और फिर हो उठेंगे जीवंत..                                                            mamta

बेटियां...

दुआ करते हैं बेटे की और , हो जाती हैं बेटियां, बड़ी जीवट होती हैं ये, यूं ही पल जाती हैं बेटियां| चौका बर्तन करती,घर में, पढ़ लिख जाती है बेटियां, सु ख सुविधाएँ बेटों को , पर आगे निकल जाती हैं बेटियां | जन्मदायिनी हैं फिर भी, मारी जाती हैं बेटियां , कभी लालच कभी वासना की, बलि चढ़ जाती हैं बेटियां | रुलाते हैं जब बेटे ,, आंसू पोछती हैं बेटियां, नफरत पाकर भी, सिर्फ प्यार लुटाती हैं बेटियां| कडककड़ाती ठण्ड में, सुहानी धूप होती हैं बेटियां , मानो या न मानो , भगवान् का वरदान होती है बेटियां ...                                                                                    mamta

आस्था....

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कैसी कैसी लीला दिखाते हो , अलग अलग नामों से प्रकट हो जाते हो , मगर सुनो तो ज़रा प्रभु जी , हम हैं तुम्हारे तुम जानते हो,  फिर ये लुकाछिपी का खेल क्यों दिखाते हो , सुना है तुम एक पुकार में दौड़े चले आते हो , फिर हमें अपने दरश क्यों नहीं कराते हो ? अब तुम्हें खुद आना ही पड़ेगा, अपना बचन निभाना ही पड़ेगा, वरना तुम्हारे भक्त रूठ जायेंगे , आस्था में प्रश्न चिन्ह लगायेंगे, अब और कितना तड़पाओगे कुछ तो बताओ प्रभु कब आओगे ...??                                                        mamta my 1st Glass painting dedicated to Ganesh jee

उड़ान...

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कभी कभी सोचती हूँ, पंछी बन जाऊं   , अनासक्त, तटस्थ, बंधन से मुक्त , उम्मीदों से दूर, कोई पहचान नहीं, किसी की यादों में भी नहीं,  पेड़ों की डालियों में झूलती शाम की गुनगुनी हवाओं में गोते लगाऊं, खुले आसमान के नीचे,  सितारों से बातें करती, इधर से उधर, बस उन्मुक्त उड़ती रहूँ , में चाहती हूँ  पंछी बन जाऊं ...                                 ...mamta 

बांवरा मन !!

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क्यों चंचल है ये मन..? क्यों भागता है ये मन? क्यों ठहरता  नहीं है तू , क्यों समझता नहीं है तू... घूमता है यादों में भूत की  ... उड़ता है सपनों में भविष्य के ... रोता है उस पर जो चला गया... पकड़ना चाहता है उसे जो तेरा है ही नहीं.... क्यों जीता नहीं इस पल को जो तेरे साथ है? अनदेखी  करता है वो ख़ुशी जो तेरे आसपास है.. बीते हुए कल  में है, न आने वाले कल में है  .. ख़ुशी तो बस वर्तमान के इस सुनहरे पल में है... क्यों ठहरता  नहीं है तू , क्यों समझता नहीं है तू...  ...mamta                                                            

तृष्णा...

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मानव मन की चाह,  सीमित हो पायेगी कभी ? शायद कभी नहीं!! आकर्षित हो मन , भागता है किसी की ओर  , थिरकती है तृष्णा , जब तक पा न ले उसे , अधिकार में न ले ले अपने, मिल जाये जिस छण, फिर अतृप्त , फिर भटकने लगता है , खोजने  कुछ नया , जो तृप्त कर सके मन को, सोचो आज मानव कितना सुखी होता, तृष्णा भरे जीवन को तृप्ति से अगर जीता |                                                     ...    mamta                                                                                                                           ...

विकास या विनाश

मनुष्य की लोलुपता  और तृष्णा से त्रस्त, शिव और शक्ति दोनों हो गए  हैं,  अब अति क्रुद्ध। अपने अंदर के शिव (चेतना) को , इंसानों की लोलुपता ने , धीरे धीरे शव बना दिया, जब शिव का खुलेगा त्रिनेत्र शव  बन जाएगी ये धरती विशेष। विकास के नाम पर प्रकृति के  सीने पर जो फोड़ा था बारूद , वही बारूद प्रकृति लौटाएगी, करके सबका विनाश | जो हम देते हैं, वही  तो वापस पाते  है । प्रकृति का है ये चक्र  अनंत आज इतरा रहा है , मानव गर्व से  निज बुद्धि पर, लेकिन शिव और प्रकृति का , ये संहारक खेल | क्या रोक सकता है मूढ़ मनुज अपनी सब शक्ति उड़ेल ??                                                                                             ...   mamta

जिंदगी और मौत ...मेरा नजरिया...

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जिंदगी तो शोर है ,कोलाहल है मौत तू चिर शांति है .. जिंदगी दौड़ भाग है , मौत तू तो विश्रांति है... जिंदगी उफनता हुआ सागर है... मौत तू शांत सरिता है' जिंदगी कठोर पाषाण सी है .. मौत तू मां की गोद सी है .... जिंदगी  एक उबाऊ कहानी है , मौत तू सुन्दर क़ विता है .... जिंदगी मे तो झूठ भी है फरेब भी, मौत तू तो एक सच्चाई है... ..                                                                                           mamta         ...                                                                     ...

संघर्ष जिंदगी का ......

जिंदगी के कई रूप देखती हूँ  मैं , अक्सर  रास्ते  से गुजरते हुए .... घर की दहलीज में बैठा काम करने वाली बाई का वों  बच्चा , सजे धजे स्कूल जाते बच्चों को अपलक निहारता , उन में  जिंदगी  की   खुशियाँ  ढू ढते हुए....... सुबह सुबह की धुन्ध में , गाड़ी साफ़ करते कुछ  लड़के , अलसाई आँखों से  खुशहाल जिंदगी के सपने  देखते हुए  ..... फूटपाथ पर बैठी एक माँ, खुद भूखी होकर भी , गोद के बच्चे को दूध पिलाती जिंदगी देते हुए.... रास्ते के दुसरी ओर रखे, कूड़ेदान से  कूड़ा बीनते कुछ बच्चे  कचरे  में अपनी जिंदगी खोजते हुए.... फटी फ्रॉक  वाली वो लड़कियां  , खा कर फेंकी हुयी झूठी पत्तलों से, जिंदगी जीने के लिए  ऊर्जा  लेते  हुए .... सोचती हूँ .. इतना संघर्ष  जिंदगी से, जिंदगी जीनें के लिए ?? लेकिन  इन्हें  नज़र -अंदाज़ करते हुए , मैं भी कहाँ  रोक पाती हूँ  , अपनी रफ्तार को, इस रफ्तार भरी जिंदगी में, जिदगी जीनें के लिए ....    ...

कोशिश...

मै भी पकड़ना चाहती हूँ उसे .. दूर क्षितिज मे जैसे सूरज की किरणे करती हैं, धरती को पकड़ने की कोशिश.. पर मेरी मजबूरी है , नहीं पकड़ पाती मै... बस ये सोच कर खुश हूँ की उसे छू तो लिया पूरा , भर दिया अपनी गर्माहट से.. भले ही शाम होते होते लौट जाउंगी मै भी, अपना अस्तित्व समेट कर वापस चली जाउंगी, उन किरणों की तरह......                                ...    mamta

गौरैया...

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गौरैया !! पहले तुम रोज सुबह आया करती थी , घर के आँगन  में फुदकती चहकती , तिनका तिनका बीन कर नीढ़ सजाती थी तुम, कभी खिड़की कभी चौखट से झांकती , घर के हर एक कोने को पहचानती थी तुम , पर गौरैया अब तुम  नहीं आती, तुम्हारा आना शुभ है गौरेया , आया करो , अपना घर भूला नहीं करते , मैं रास्ता देखूंगी ... आना फिर कभी ना जाने के लिए....                                                ...     mamta

आखिर क्यूँ

माना बलिष्ठ है पुरूष,स्त्री की उससे समानता नहीं है, पर स्त्री पुरूष की दासी नहीं है , स्त्री को सुरक्षा भरा घेरा चाहिए, पुरूष सुरक्षा देने से करता है इनकार, उलटे करता है उसकी अस्मिता में प्रहार , क्यूँ?? महिला दिवस तब तक है बेकार, जब तक महिलाओ पर होगा अत्याचार ...                                                           ... ...  mamta

मज़हब

मैने हिन्दू के घर जनम लिया तो हिन्दू हो गयी , मुसलमान के घर लेती तो मुसलमान हो जाती, आज रामायण है तब हाथ में कुरान आ जाती, मंदिर के घंटो की जगह मुझे अजान की आवाज़ भाती , जो धर्म सिखाता है इंसान वही बन जाता है , आत्मा तो वही है बस नाम बदल जाता है