कौन अपना ~~~~कौन पराया~~~~
मापदंड क्या है ? कि कौन अपने कौन पराये होते हैं ,
आँखों से जो दिखते हैं ,क्या बस वही रिश्ते सच्चे होते हैं ..
कुछ अपने होकर एहसासहीन, अपनों के दर्द से आँख मूँद लेते हैं ,
कहीं कुछ बेगाने भी अपना बन हाथ थाम लेते है ..
कुछ लोग खून के रिश्ते भी भुला देते हैं,
कुछ लोग बिन रिश्ते भी रिश्ता निभा लेते हैं ..
कहीं कुछ अपने बेरहमी से दिल तोड़ देते हैं ,
कहीं कुछ अनजाने लोग अनूठा बंधन जोड़ लेते हैं ..
कभी अपनों की भीड़ में भी सब बेगाना सा लगता है ,
कभी अंजानो के बीच में कोई अपना सा लगता है ..
कहीं खून के रिश्तों में भी ,जज्बात नहीं होते ,
कहीं अनजान के जज्बों में भी लगता है ,खून दौड रहा है ..
.................................................................................. mamta
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (11.09.2015) को "सिर्फ कथनी ही नही, करनी भी "(चर्चा अंक-2095) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं के साथ, सादर...!
हार्दिक आभार राजेंद्र जी मेरी कविता को इस अंक में शामिल करने के लिए ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteरचना पढने के लिए आभार Kaushal
Deleteबेहद सुन्दर
ReplyDeleteआपने समय निकल कर मेरी रचना को पढ़ा ...आभार Mukesh ji ..
Deleteआभार...
ReplyDeleteप्यारी व मार्मिक रचना
कहीं कुछ अपने बेरहमी से दिल तोड़ देते हैं
उत्कृष्ट पंक्ति..
और क्यों...
सच सुनने से न जाने क्यों कतराते हैं लोग…!
सुन कर झूठी तारीफ, खूब मुस्कुराते है लोग…!!
सादर
बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी आपने कविता को सराहा
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteधन्यवाद सुशील जी आपने समय निकाला
Deleteधन्यवाद सुशील जी आपने समय निकाला
Deleteयही तो विडंबना है !
ReplyDeleteआभार प्रतिभा जी आप आयीं ..
Deleteप्रशंसनीय
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