एक ख्याल.....बेवजह

मैं उदास थी ,कुछ परेशान  थी |
आज कोई अच्छी खबर नहीं थी ,
खुश होने की कोई वजह नहीं थी |
अनमनी सी मैंने खिड़की से झाँका,
इधर उधर हर तरफ ताका |

पेड़ मस्ती में झूम रहे थे,
पंछी चहचहाते उड़ रहे थे,
इधर बगिया में फूल  इतरा रहे थे  ,
उधर गिलहरियां मुंडेर में फुदक  रही थी,
कहीं भी तो  कोई मायूसी नहीं थी।

विस्मित थी कौतुहल वश मैंने पूछा उनसे,
बेटा हुआ होगा या लॉटरी लगी होगी ,
चुनाव जीते हो या नौकरी लगी होगी, 
सुनो यूं ही कोई खुश होता नहीं ,
जरूर कोई तो अच्छी खबर  होगी |

घूरकर देखा मुझे, फिर ठठाकर हंस पड़े ,
मेरी बातें सुन सब एक स्वर में बोल पड़े ,
कितना बांवरा है ये इंसान ,
हर हाल में क्यूँ ना रहता है सहज ,
खुश रहने के लिए भी चाहिए होती है क्या कोई वजह ?

वो तो बस एक सपना था, 
जो आँख खुली और टूट गया,
लेकिन एक यथार्थ से अवगत मुझे करा गया ,
जब पूरी कायनात  खुश होती है बेवजह,
तो हम ही क्यों ढूंढते हैं खुश रहने की कोई वजह ????

                                                                           ममता

Comments

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    आपकी कविता बहुत ही अद्भुत है। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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