मैं उदास थी ,कुछ परेशान थी | आज कोई अच्छी खबर नहीं थी , खुश होने की कोई वजह नहीं थी | अनमनी सी मैंने खिड़की से झाँका, इधर उधर हर तरफ ताका | पेड़ मस्ती में झूम रहे थे, पंछी चहचहाते उड़ रहे थे, इधर बगिया में फूल इतरा रहे थे , उधर गिलहरियां मुंडेर में फुदक रही थी, कहीं भी तो कोई मायूसी नहीं थी। विस्मित थी कौतुहल वश मैंने पूछा उनसे, बेटा हुआ होगा या लॉटरी लगी होगी , चुनाव जीते हो या नौकरी लगी होगी, सुनो यूं ही कोई खुश होता नहीं , जरूर कोई तो अच्छी खबर होगी | घूरकर देखा मुझे, फिर ठठाकर हंस पड़े , मेरी बातें सुन सब एक स्वर में बोल पड़े , कितना बांवरा है ये इंसान , हर हाल में क्यूँ ना रहता है सहज , खुश रहने के लिए भी चाहिए होती है क्या कोई वजह ? वो तो बस एक सपना था, जो आँख खुली और टूट गया, लेकिन एक यथार्थ से अवगत मुझे करा गया , जब पूरी कायनात खुश होती है बेवजह, तो हम ही क्यों ढूंढते हैं खुश रहने की कोई वजह ??? ? ...
...Apna Ghar Bhulte nahi.... wah bahut sundar bhav...Gauraya ke liye..
ReplyDeleteधन्यवाद दिनेश जी..
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ - रचनाओं ने प्रभावित किया और ब्लॉग भी सुंदर लगा.
ReplyDeleteWah Mamta.....Out Poetess rocks
ReplyDeleteWah Mamta.....Out Poetess rocks
ReplyDeleteThanks Meeta di ...ur cpmments motivate me...:)
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