गौरैया...
गौरैया !!
पहले तुम रोज सुबह आया करती थी ,
घर के आँगन में फुदकती चहकती ,
पहले तुम रोज सुबह आया करती थी ,
घर के आँगन में फुदकती चहकती ,
तिनका तिनका बीन कर नीढ़ सजाती थी तुम,
कभी खिड़की कभी चौखट से झांकती ,
घर के हर एक कोने को पहचानती थी तुम ,
पर गौरैया अब तुम नहीं आती,
घर के हर एक कोने को पहचानती थी तुम ,
पर गौरैया अब तुम नहीं आती,
...Apna Ghar Bhulte nahi.... wah bahut sundar bhav...Gauraya ke liye..
ReplyDeleteधन्यवाद दिनेश जी..
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ - रचनाओं ने प्रभावित किया और ब्लॉग भी सुंदर लगा.
ReplyDeleteWah Mamta.....Out Poetess rocks
ReplyDeleteWah Mamta.....Out Poetess rocks
ReplyDeleteThanks Meeta di ...ur cpmments motivate me...:)
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