गौरैया...

गौरैया !!
पहले तुम रोज सुबह आया करती थी ,

घर के आँगन  में फुदकती चहकती ,
तिनका तिनका बीन कर नीढ़ सजाती थी तुम,
कभी खिड़की कभी चौखट से झांकती ,
घर के हर एक कोने को पहचानती थी तुम ,
पर गौरैया अब तुम  नहीं आती,
तुम्हारा आना शुभ है गौरेया ,
आया करो ,
अपना घर भूला नहीं करते ,
मैं रास्ता देखूंगी ...
आना फिर कभी ना जाने के लिए....

                                               ...   mamta

Comments

  1. ...Apna Ghar Bhulte nahi.... wah bahut sundar bhav...Gauraya ke liye..

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  2. धन्यवाद दिनेश जी..

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  3. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ - रचनाओं ने प्रभावित किया और ब्लॉग भी सुंदर लगा.

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  4. Wah Mamta.....Out Poetess rocks

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  5. Wah Mamta.....Out Poetess rocks

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