कोशिश...
मै भी पकड़ना चाहती हूँ उसे ..
दूर क्षितिज मे जैसे सूरज की किरणे करती हैं,
धरती को पकड़ने की कोशिश..
पर मेरी मजबूरी है ,
नहीं पकड़ पाती मै...
बस ये सोच कर खुश हूँ की
उसे छू तो लिया पूरा ,
भर दिया अपनी गर्माहट से..
भले ही शाम होते होते लौट जाउंगी मै भी,
अपना अस्तित्व समेट कर वापस चली जाउंगी,
उन किरणों की तरह......
दूर क्षितिज मे जैसे सूरज की किरणे करती हैं,
धरती को पकड़ने की कोशिश..
पर मेरी मजबूरी है ,
नहीं पकड़ पाती मै...
बस ये सोच कर खुश हूँ की
उसे छू तो लिया पूरा ,
भर दिया अपनी गर्माहट से..
भले ही शाम होते होते लौट जाउंगी मै भी,
अपना अस्तित्व समेट कर वापस चली जाउंगी,
उन किरणों की तरह......
... mamta
धन्यवाद अरुण जी...
ReplyDeleteक्या बात है ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद वर्मा जी ....
Deleteधन्यवाद अरुण जी मेरी रचना को ब्लॉग प्रसारण में शामिल करने के लिए...
ReplyDeleteबहुत सुंदर !!
ReplyDeleteb ahut behtreen rachna mamta ji
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