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Showing posts from June, 2013

विकास या विनाश

मनुष्य की लोलुपता  और तृष्णा से त्रस्त, शिव और शक्ति दोनों हो गए  हैं,  अब अति क्रुद्ध। अपने अंदर के शिव (चेतना) को , इंसानों की लोलुपता ने , धीरे धीरे शव बना दिया, जब शिव का खुलेगा त्रिनेत्र शव  बन जाएगी ये धरती विशेष। विकास के नाम पर प्रकृति के  सीने पर जो फोड़ा था बारूद , वही बारूद प्रकृति लौटाएगी, करके सबका विनाश | जो हम देते हैं, वही  तो वापस पाते  है । प्रकृति का है ये चक्र  अनंत आज इतरा रहा है , मानव गर्व से  निज बुद्धि पर, लेकिन शिव और प्रकृति का , ये संहारक खेल | क्या रोक सकता है मूढ़ मनुज अपनी सब शक्ति उड़ेल ??                                                                                             ...   mamta

जिंदगी और मौत ...मेरा नजरिया...

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जिंदगी तो शोर है ,कोलाहल है मौत तू चिर शांति है .. जिंदगी दौड़ भाग है , मौत तू तो विश्रांति है... जिंदगी उफनता हुआ सागर है... मौत तू शांत सरिता है' जिंदगी कठोर पाषाण सी है .. मौत तू मां की गोद सी है .... जिंदगी  एक उबाऊ कहानी है , मौत तू सुन्दर क़ विता है .... जिंदगी मे तो झूठ भी है फरेब भी, मौत तू तो एक सच्चाई है... ..                                                                                           mamta         ...                                                                     ...

संघर्ष जिंदगी का ......

जिंदगी के कई रूप देखती हूँ  मैं , अक्सर  रास्ते  से गुजरते हुए .... घर की दहलीज में बैठा काम करने वाली बाई का वों  बच्चा , सजे धजे स्कूल जाते बच्चों को अपलक निहारता , उन में  जिंदगी  की   खुशियाँ  ढू ढते हुए....... सुबह सुबह की धुन्ध में , गाड़ी साफ़ करते कुछ  लड़के , अलसाई आँखों से  खुशहाल जिंदगी के सपने  देखते हुए  ..... फूटपाथ पर बैठी एक माँ, खुद भूखी होकर भी , गोद के बच्चे को दूध पिलाती जिंदगी देते हुए.... रास्ते के दुसरी ओर रखे, कूड़ेदान से  कूड़ा बीनते कुछ बच्चे  कचरे  में अपनी जिंदगी खोजते हुए.... फटी फ्रॉक  वाली वो लड़कियां  , खा कर फेंकी हुयी झूठी पत्तलों से, जिंदगी जीने के लिए  ऊर्जा  लेते  हुए .... सोचती हूँ .. इतना संघर्ष  जिंदगी से, जिंदगी जीनें के लिए ?? लेकिन  इन्हें  नज़र -अंदाज़ करते हुए , मैं भी कहाँ  रोक पाती हूँ  , अपनी रफ्तार को, इस रफ्तार भरी जिंदगी में, जिदगी जीनें के लिए ....    ...

कोशिश...

मै भी पकड़ना चाहती हूँ उसे .. दूर क्षितिज मे जैसे सूरज की किरणे करती हैं, धरती को पकड़ने की कोशिश.. पर मेरी मजबूरी है , नहीं पकड़ पाती मै... बस ये सोच कर खुश हूँ की उसे छू तो लिया पूरा , भर दिया अपनी गर्माहट से.. भले ही शाम होते होते लौट जाउंगी मै भी, अपना अस्तित्व समेट कर वापस चली जाउंगी, उन किरणों की तरह......                                ...    mamta

गौरैया...

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गौरैया !! पहले तुम रोज सुबह आया करती थी , घर के आँगन  में फुदकती चहकती , तिनका तिनका बीन कर नीढ़ सजाती थी तुम, कभी खिड़की कभी चौखट से झांकती , घर के हर एक कोने को पहचानती थी तुम , पर गौरैया अब तुम  नहीं आती, तुम्हारा आना शुभ है गौरेया , आया करो , अपना घर भूला नहीं करते , मैं रास्ता देखूंगी ... आना फिर कभी ना जाने के लिए....                                                ...     mamta