विकास या विनाश
मनुष्य की लोलुपता और तृष्णा से त्रस्त, शिव और शक्ति दोनों हो गए हैं, अब अति क्रुद्ध। अपने अंदर के शिव (चेतना) को , इंसानों की लोलुपता ने , धीरे धीरे शव बना दिया, जब शिव का खुलेगा त्रिनेत्र शव बन जाएगी ये धरती विशेष। विकास के नाम पर प्रकृति के सीने पर जो फोड़ा था बारूद , वही बारूद प्रकृति लौटाएगी, करके सबका विनाश | जो हम देते हैं, वही तो वापस पाते है । प्रकृति का है ये चक्र अनंत आज इतरा रहा है , मानव गर्व से निज बुद्धि पर, लेकिन शिव और प्रकृति का , ये संहारक खेल | क्या रोक सकता है मूढ़ मनुज अपनी सब शक्ति उड़ेल ?? ... mamta