फ़लसफ़ा -ए-ज़िन्दगी.....

आज यूं ही  मैंने,जिंदगी का हिसाब लगाया,
क्या खोया क्या पाया ,एक समीकरण बनाया,

यादों की गलियों में एक चक्कर लगाया ,
झाड़ पोछ अतीत के पन्नो को पलटाया,

बिखरी मिली कुछ ख्वायिशें ,जो रही गयी अधूरी थी ,
ख्वाबों की एक बड़ी लिस्ट ,जो हुयी नहीं पूरी थी ,

कुछ टूटे हुए सपने थे ,कहीं रूठे हुए अपने थे,
नन्ही नन्ही खुशिया थी ,कुछ प्यारे प्यारे रिश्ते थे ,

कहीं आँखे नम थी ,कहीं थोड़े गम थे, 
हँसते मुस्कुराते पल,वो भी कहाँ  कम थे ,

जिंदगी के हर मोड़ में यादें सुहानी थी, 
सुख और दुःख की मिलीजुली कहानी थी ,

वक़्त ने सिखा दिया मुझे ,
फल्सफा- ए - जिंदगी  बहुत अजीब है ,

कहीं कुछ जुड जाता है ,कहीं कुछ घट जाता है 
और ये समीकरण संतुलित हो जाता है ...

...................................................mamta


Comments

  1. Beautiful Words dear ..keep writing !

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  2. Superb, Mamta. Thanks Want, I saw this poem he had shared. Did not know of this blog of yours. Clicked and found it is our Mamta. I am impressed by your thoughts and verse. Will visit more often now. 👍

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    1. welcome and many many thanks sir for taking the time to read my blog ..... Thank you ...

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  3. क्या बात है दी बहुत सुन्दर भाव, शब्दों का चयन भी लाजवाब .....

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