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फ़लसफ़ा -ए-ज़िन्दगी.....

आज यूं ही  मैंने,जिंदगी का हिसाब लगाया, क्या खोया क्या पाया ,एक समीकरण बनाया, यादों की गलियों में एक चक्कर लगाया , झाड़ पोछ अतीत के पन्नो को पलटाया, बिखरी मिली कुछ ख्वायिशें ,जो रही गयी अधूरी थी , ख्वाबों की एक बड़ी लिस्ट ,जो हुयी नहीं पूरी थी , कुछ टूटे हुए सपने थे ,कहीं रूठे हुए अपने थे, नन्ही नन्ही खुशिया थी ,कुछ प्यारे प्यारे रिश्ते थे , कहीं आँखे नम थी ,कहीं थोड़े गम थे,  हँसते मुस्कुराते पल,वो भी कहाँ  कम थे , जिंदगी के हर मोड़ में यादें सुहानी थी,  सुख और दुःख की मिलीजुली कहानी थी , वक़्त ने सिखा दिया मुझे , फल्सफा- ए - जिंदगी  बहुत  अजीब है , कहीं कुछ जुड जाता है ,कहीं कुछ घट जाता है  और ये समीकरण संतुलित हो जाता है ... .............................. ..................... mamta