उड़ान...
कभी कभी सोचती हूँ, पंछी बन जाऊं , अनासक्त, तटस्थ, बंधन से मुक्त , उम्मीदों से दूर, कोई पहचान नहीं, किसी की यादों में भी नहीं, पेड़ों की डालियों में झूलती शाम की गुनगुनी हवाओं में गोते लगाऊं, खुले आसमान के नीचे, सितारों से बातें करती, इधर से उधर, बस उन्मुक्त उड़ती रहूँ , में चाहती हूँ पंछी बन जाऊं ... ...mamta