विकास या विनाश

मनुष्य की लोलुपता 
और तृष्णा से त्रस्त,
शिव और शक्ति दोनों हो गए  हैं,
 अब अति क्रुद्ध।

अपने अंदर के शिव (चेतना) को ,
इंसानों की लोलुपता ने ,
धीरे धीरे शव बना दिया,
जब शिव का खुलेगा त्रिनेत्र
शव  बन जाएगी ये धरती विशेष।

विकास के नाम पर प्रकृति के 
सीने पर जो फोड़ा था बारूद ,
वही बारूद प्रकृति लौटाएगी,
करके सबका विनाश |

जो हम देते हैं,वही  तो वापस पाते  है ।
प्रकृति का है ये चक्र अनंत

आज इतरा रहा है ,
मानव गर्व से  निज बुद्धि पर,लेकिन शिव और प्रकृति का ,
ये संहारक खेल |
क्या रोक सकता है मूढ़ मनुज अपनी सब शक्ति उड़ेल ??
                                                                                            ...  mamta

Comments

  1. अपने अंदर के शिव(चेतना) को इंसानों ने ,
    धीरे-धीरे शव बना दिया,
    शायद अब धीरे-धीरे शिव,
    इंसानों को शव बना रहे हैं ,--
    बहुत सुन्दर भावों का लाजवाब अभिव्यक्ति !
    latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रसाद जी ....आप के कमेंट्स उत्साह वर्धक हैं....

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  2. बहुत ही अच्छे भाव की प्रस्तुति ।
    कभी यहाँ भी पधारें http://www.kavineeraj.blogspot.in/2013/06/blog-post_24.html

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  3. प्रेरक प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद राकेश जी उत्साह वर्धन के लिए...

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  4. बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना !!

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