फिर आया नया साल
अपनी बंद रहस्य मयी
पंखुड़ियों को
धीरे धीरे खोल
मुस्कुराने को है
एक और नयी सुबह का फ़ूल
आशीर्वाद सा झरेगा
स्वर्णिम पराग
और नयी नयी कोपलों
सी फिर जनम लेगी आशाएं
.
रेशमी पंखुड़ियों के
कस्तूरी स्पर्शों से
पुछ जायेगें
शबनमी आंसू
और हर शाख पर फ़ूलेगी
मुसकानें
नयी उमंगो की
चलो भर कर
अंजुरी में विश्वास
चढायें अर्ध्य
नव वर्ष के
चढते सूरज को..
आज फ़िर उड़ेगी
सम्भा्वनाओं की धूल
मुस्कुराने को है
एक और नयी सुबह का फूल ....
बहुत बढ़िया ..................सुंदर रचना
ReplyDelete